अनुभूति में देवी नागरानी की
रचनाएँ नई ग़ज़लों में-
ज़माने से रिश्ता
दोस्तों का है अजब ढब
फिर पहाड़ों से झरना
मुझे भा गई
रियासत जब भी ढहती है
अंजुमन में-
आँधियों के पर
क्या कशिश है
खुशी की हदों
के पार
गिरा हूँ मुँह के बल
डर
दिल से दिल तक
दीवार-ओ-दर
बढ़ रही है आजकल
बादे बहार आई
मेरे वतन की ख़ुशबू
रो दिए
सदा धूप में
सीप में मोती
शोर दिल में
कविताओं में-
भारत देश महान |
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ख़ुशी की हदों के पार
अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
दर्द पिघला है अश्क़ बार हूँ मैं.
गीत कैसे न सुर में ढल जाते
दोस्तो साज़े दिल का तार हूँ मैं.
जिसने पी है तेरी निगाहों से
जो न उतरे वही खुमार हूँ मैं.
सुनती हूँ आहटें ख़िज़ाओं की
जाने वाली है जो बहार हूँ मैं.
जिनको मांगे बिना मिले आँसू
उन्हीं लोगों में अब शुमार हूँ मैं.
जिससे घायल नहीं हुआ कोई
मोम की एक बस कटार हूँ मैं.
24 नवंबर 2007
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