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अनुभूति में देवी नागरानी की रचनाएँ

नई ग़ज़लों में-
ज़माने से रिश्ता
दोस्तों का है अजब ढब
फिर पहाड़ों से झरना
मुझे भा गई
रियासत जब भी ढहती है

अंजुमन में-
आँधियों के पर
क्या कशिश है
खुशी की हदों के पार
गिरा हूँ मुँह के बल
डर
दिल से दिल तक
दीवार-ओ-दर
बढ़ रही है आजकल
बादे बहार आई
मेरे वतन की ख़ुशबू
रो दिए

सदा धूप मे
सीप में मोती

शोर दिल में

कविताओं में-
भारत देश महान

  रियासत जब भी ढहती है

रियासत जब भी ढहती है नवासे दुख उठाते हैं
कहीं पंचर बनाते हैं कहीं ताँगा चलाते हैं

बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी कमाते हैं
सुबह से शाम तक फुटपाथ पर किस्मत बिताते हैं

जमूरा सिर खुजाता है, मदारी हाथ मलता है
तमाशा देख कर बदमाश बच्चे भाग जाते हैं

किसी के साथ रहना और उससे बचके रह लेना
बताओ किस तरह से लोग ये रिश्ता निभाते हैं

हजारों लोग मिलते हैं तो कोई इक समझता है
बड़ी मुश्किल से हम भी दोस्ती में सिर झुकाते हैं

२ मार्च २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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