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अनुभूति में देवी नागरानी की रचनाएँ

नई ग़ज़लों में-
ज़माने से रिश्ता
दोस्तों का है अजब ढब
फिर पहाड़ों से झरना
मुझे भा गई
रियासत जब भी ढहती है

अंजुमन में-
आँधियों के पर
क्या कशिश है
खुशी की हदों के पार
गिरा हूँ मुँह के बल
डर
दिल से दिल तक
दीवार-ओ-दर
बढ़ रही है आजकल
बादे बहार आई
मेरे वतन की ख़ुशबू
रो दिए

सदा धूप मे
सीप में मोती

शोर दिल में

कविताओं में-
भारत देश महान

 

  बढ़ रही है आजकल

बढ़ रही है चोंचलों की आजकल गुस्ताखियाँ
लोरियां रोकर सुनातीं खाली पन को दादियाँ.

दिन दहाड़े छीन लेता है समय आज़ादियाँ
कर रही हैं हुकुमरानी आज कल दुश्वारियाँ.

रक्स करती हैँ अंधेरों में बसी बरबादियाँ
रोशनी में भी दिखाई देती है तारीकियाँ.

क्या हुआ क्यों डर रहे हैं आजकल के ये बुज़ुर्ग
इनकी आंखों की हुईं गुल क्या सभी ताबानियाँ.

उनकी चीखें गूंजती हैं वादियों में इस तरह
अनकही कुछ दास्तांने कह रही हों वादियाँ.

सोच पर ताले लगे है, होंट भी सिल से गए
अब तबाही की है ‘देवी’ बोलती रानाइयाँ.

24 नवंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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