गिरा हूँ मुँह के
बल गिरा हूँ मुँह के बल,
ज़ख़्मी हुआ हूँ
लगा कर झूठ के पर जब उड़ा हूँ
गँवा कर होश आता जोश में जब
मैं जीती बाज़ियाँ तब हारता हूँ
मुझे पहुँचाएँगी साहिल पे मौजें
मैं तूफ़ानों में घिरकर सोचता हूँ
मिलन का मुंतज़र हूँ मौत आजा
मुझे जीना था उतना जी लिया हूँ
उधर देखा नहीं आँखें उठाकर
नज़र से जब किसी की मैं गिरा हूँ
लगाईं तोहमतें बहरों ने मुझ पर
वो समझे बेज़ुबाँ मैं हो गया हूँ
रही हर आँख नम महाफ़िल में
'देवी'
मैं बनकर दर्द हर दिल में बसा हूँ
२१ जुलाई २००८ |