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अनुभूति में देवी नागरानी की रचनाएँ

नई ग़ज़लों में-
ज़माने से रिश्ता
दोस्तों का है अजब ढब
फिर पहाड़ों से झरना
मुझे भा गई
रियासत जब भी ढहती है

अंजुमन में-
आँधियों के पर
क्या कशिश है
खुशी की हदों के पार
गिरा हूँ मुँह के बल
डर
दिल से दिल तक
दीवार-ओ-दर
बढ़ रही है आजकल
बादे बहार आई
मेरे वतन की ख़ुशबू
रो दिए

सदा धूप मे
सीप में मोती

शोर दिल में

कविताओं में-
भारत देश महान

  गिरा हूँ मुँह के बल

गिरा हूँ मुँह के बल, ज़ख़्मी हुआ हूँ
लगा कर झूठ के पर जब उड़ा हूँ

गँवा कर होश आता जोश में जब
मैं जीती बाज़ियाँ तब हारता हूँ

मुझे पहुँचाएँगी साहिल पे मौजें
मैं तूफ़ानों में घिरकर सोचता हूँ

मिलन का मुंतज़र हूँ मौत आजा
मुझे जीना था उतना जी लिया हूँ

उधर देखा नहीं आँखें उठाकर
नज़र से जब किसी की मैं गिरा हूँ

लगाईं तोहमतें बहरों ने मुझ पर
वो समझे बेज़ुबाँ मैं हो गया हूँ

रही हर आँख नम महाफ़िल में 'देवी'
मैं बनकर दर्द हर दिल में बसा हूँ

२१ जुलाई २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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