अनुभूति में देवी नागरानी की
रचनाएँ नई रचनाओं में-
गीत गाती जा सबा
घर की चौखट
जर्द चेहरा हुआ है
बेबसी में भी
हिल गई बुनियाद
अंजुमन में-
आँधियों के पर
क्या कशिश है
खुशी की हदों
के पार
गिरा हूँ मुँह के बल
चमन में
डर
ज़माने से रिश्ता
दिल से दिल तक
दीवार-ओ-दर
दोस्तों का है अजब ढब
फिर पहाड़ों से झरना
बढ़ रही है आजकल
बादे बहार आई
बेताबियों को हद से
मुझे भा गई
मैं खुशी से
मेरे वतन की ख़ुशबू
रियासत जब भी ढहती है
रो दिए
सदा धूप में
सीप में मोती
सुनते हैं कहा
शोर दिल में
कविताओं में-
भारत देश महान |
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बेबसी में भी
बेबसी में भी निराशाओं से लड़ना चाहिये
इक नया इतिहास संघर्षों का रचना चाहिए
सरफिरी है, हाथ लगने से पिघल जाती है क्यों
बर्फ़ है वो, बर्फ़ की मानिंद पिघलना चाहिए
क्या क्या टूटा, क्या क्या बिखरा, कर्चियाँ बिखरी कहाँ
आईने का छोड़ कर ग़म, फिर सँवरना चाहिए
गाहे-गाहे मंजिलें आकर मिलेंगी राहों से
अपने हिस्से का मिले आकाश, उड़ना चाहिए
खोदना अपने भी दिल में एक ऐसी ही सुरंग
बस अँधेरा चीरकर सूरज, निकलना चाहिए
पाने हों लालों-गुहर, तो बैठना साहिल पे क्या
गहरे पानी में निडर होकर उतरना चाहिए
झूठ दोहराया गया है जिंदगी में बार-बार
अब समय आया है सच को भी समझना चाहिए
२४ मार्च २०१४ |