बनवासों का कोलाहल
है आता तो है सुख लेकिन
उत्सव पर्यन्त नहीं रहता है
मेरे घर आयोजन का
आनंदित अंत नहीं रहता है
सिर्फ़ धुआँ ही धुआँ हमारी दीपमालिका का हासिल है
मेरे घर हर राजतिलक पर बनवासों का कोलाहल है
खुशियाँ खोयी खोयी रहतीं
आशंका के वीरानों में
नृप दशरथ की मृत्यु, खड़ाउँ राज्य,
कैकेयी अपमानों में
क्या होगा इस बार घेरता हर अवसर पर कौतूहल है
मेरे घर हर राजतिलक पर बनवासों का कोलाहल है
एक अगर हल हो जाता तो
सौ सौ प्रश्न खड़े रहते हैं
मेरी सीमित क्षमताओं से
सपने सदा बड़े रहते हैं
दमित कामनाओं के शव पर संगमरमरी ताजमहल है
मेरे घर हर राजतिलक पर बनवासों का कोलाहल है
१५ दिसंबर २००८ |