मौत मुझको दे
दे मोहलत
मानता, मैंने तुझे
निशिदिन बुलाया था
इस बहाने दर्दो-ग़म को
बरगलाया था
झेल लूँ गम की जलालत
और थोड़ी-सी
मौत मुझको दे दे मोहलत
और थोड़ी-सी
अब न सपने शेष हैं ना
काम बाकी है
अब न साकी, अब न मय,
ना जाम बाकी है
शेष पर रिन्दों-सी चाहत,
''और थोड़ी-सी`'
मौत मुझको दे दे मोहलत
और थोड़ी-सी
अब न कोई मुस्कराता
उस सलीके से
हो गए हैं ज़िन्दगी के
रंग फीके से
है मगर अटकी मुहब्बत
और थोड़ी-सी
मौत मुझको दे दे मोहलत
और थोड़ी-सी
१५ दिसंबर २००८ |