देखने को
देखने को
यों बहुत से भीड़-मेले हो रहे हैं
मैं अकेला, तू अकेला
सब अकेले हो रहे हैं
व्यक्ति की दुनिया निरन्तर
और संकरी हो रही है
अब सभी के अलग आँगन
द्वार देहरी हो रही है
और उसमें रात दिन लाखों
झमेले हो रहे हैं
मैं अकेला, तू अकेला
सब अकेले हो रहे हैं
दायरा विश्वास का भी
और छोटा हो रहा है
क्या पढ़ें दिल, जबकि चेहरा जड़
मुखौटा हो रहा है
बस्तियों के लोग
दिन प्रतिदिन बनैले हो रहे हैं
मैं अकेला, तू अकेला
सब अकेले हो रहे हैं
क्या हुआ है
हम भरे समुदाय मैं भटके हुए हैं
आँख में रहते नहीं हैं
आँख में खटके हुए हैं
वासना से भावना के स्वर
कसैले हो रहे हैं
मैं अकेला, तू अकेला
सब अकेले हो रहे हैं
१५ दिसंबर २००८ |