किताबें
सकपकाती हैं, न डरती हैं किताबें
डाकियों का काम जब करती किताबें
शब्द के बिन भी कई सन्देश देतीं
सीढ़ियों पर बेवजह गिरती किताबें
थाम लेतीं जब उन्हें नाजुक हथेलीं
संग-संग इठलाई-सी फिरतीं किताबें
छात्र आते और जाते मौसमों से
ज़िन्दगी भर को हुई भरती किताबें
शब्द का साधक समय के पार जाता
देह मरती पर नहीं मरतीं किताबें
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जून २००८ |