कोई कबीर अभी ज़िंदा है
भाट चारणों की बस्ती में
कोई कबीर अभी ज़िंदा है
सब चुप, सबके मुँह पर ताले
आँखों में स्वारथ के जाले
इनमें अलख जगाने निकला
एक फकीर अभी ज़िंदा है
कोई कबीर अभी ज़िंदा है
सब फ्रेमों में जड़े हुए हैं
मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं
लाशों के इन अंबारों में
कोई अधीर अभी ज़िंदा है
कोई कबीर अभी ज़िंदा है
अपने घर को फूँक चुका है
सारे लालच थूक चुका है
चाँदी की जूती के आगे
एक शमशीर अभी ज़िंदा है
कोई कबीर अभी ज़िंदा है
३ नवंबर २००८ |