अनुभूति में
संध्या सिंह की
रचनाएँ -
नये गीतों में-
एक अधूरी खोज
कुछ लम्हे रेतीले
जिजीविषा
यों हमने सोपान चढ़े
क्षणिकाओं में-
जीवन (कुछ क्षणिकाएँ)
गीतों में-
अंतर्द्वंद्व
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
प्रतिरोध
मन धरती सा दरक गया
मौसम के बदलाव
रीते घट सम्बन्ध हुए
समय- नदी
दोहों में-
सर्द सुबह
छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना
सीलन
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यों हमने सोपान
चढ़े
कुछ अपनों को कुहनी मारी
कुछ रिश्तों पर पाँव पड़े
यों हमने सोपान चढ़े
जितनी बाहर बिजली चमकी
उतना भीतर घन गहराया
यश वैभव पर आँख गड़ी तो
समझ बूझ पर पर्दा छाया
मैल कुटिलता के ऊपर से
मुस्कानों के झूठ गढ़े
यों हमने सौपान चढ़े
स्वारथ के काले धागों से
षड्यंत्रों का जाला बुन कर
पाँव तले अपनों के पथ में
बिछा दिए काँटे चुन चुन कर
कुछ पैने नाखून बढाकर
कुछ कछुए से खोल मढ़े
यों हमने सोपान चढ़े
जब से नभ में दिखे सितारे
पाँव ज़मीं पर टिक ना पाए
नैतिकता की मिट्टी छूटी
तिकड़म ने डैने फैलाए
कुछ गिद्धों से ले पैनापन
कुछ गिरगिट से पाठ पढ़े
यों हमने सोपान चढ़े
१ दिसंबर २०१८
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