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अनुभूति में संध्या सिंह की रचनाएँ -

गीतों में-
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
मन धरती सा दरक गया
रीते घट सम्बन्ध हुए

दोहों में-
सर्द सुबह

छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना

सीलन

 

सर्द सुबह (दोहे)

सूरज के दर्शन नहीं, हुई सुबह से शाम
धूप राह भूली कहीं, कुहरे का कुहराम

सांध्य-प्रिया के अंक में, रवि करता विश्राम
उषा-काल नव दिवस को, देता नव आयाम

पावन किरणें भोर की, दे आशिष उपहार
शुद्ध सुगन्धित पुष्प से, मन में झरें विचार

कुहरे में मध्यम हुआ, सूरज का भी दंभ
तिल गुड़ और अलाव से, सर्दी का आरम्भ

भोर नवेली है खड़ी, लिए मधुर मुस्कान
शुभ्र बदन पर डाल कर, नारंगी परिधान

अंतस में सूरज उगे, भीतर करे उजास
मन का सारा तम हरे, भरे आस विश्वास

शरमाया सूरज उगा, लगे चाँद सा रूप
चली धुंध को ओढ़ कर, सोन परी सी धूप

संध्या-रवि संयोग से, जग पाता विश्राम
रजनी सो जाती सुबह, जगता सूर्य ललाम

२७ फरवरी २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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