अनुभूति में
संध्या सिंह की
रचनाएँ -
गीतों में-
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
मन धरती सा दरक गया
रीते घट सम्बन्ध हुए
दोहों में-
सर्द सुबह
छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना
सीलन
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सीलन
फर्ज के तहखाने मे
रिश्तों की संदूकची
जिसमे बंद पड़े-
सीलन खाए कुछ सपने
वक्त की नमी से
बाहर निकाले एक दिन
तोड़ कर -
संयम का जंग लगा ताला
और डाल दिए झटक कर
संघर्ष की रस्सी पर
अभाव के आँगन मे
यथार्थ के सूरज की
किरणों के बीच I
मगर -
इन्द्रधनुषी सपनों की
सतरंगी धारी
कुछ नमी से उड़ गयी
कुछ हार गयी
धूप से
अंततः शेष -
रंगहीन व जर्जर
हलके सपनों की -
वजनदार गठरी
मेरे कंधे पर
२७ फरवरी २०१२
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