अनुभूति में
संध्या सिंह की
रचनाएँ -
गीतों में-
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
मन धरती सा दरक गया
रीते घट सम्बन्ध हुए
दोहों में-
सर्द सुबह
छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना
सीलन
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अतीत का झरोखा
कॉलिज और सहपाठी,
जैसे खंडहर की खिड़की से -
रंगमहल की झाँकी
कुलाँचे मारते
शरारत के झुरमुट से
हिरन से
ठहाके ले जाते उठा के
पथरीली ज़मीन से बादल के ऊपर
रखा है मैंने उनको
कस कर बंद किये पारदर्शी जार में
सुरक्षित, संरक्षित,
साफ़ और चमकीले
बचा कर धूल से
वक्त की
आज भी वैसे ही -
ऊर्जा पुंज से
युवा और स्वस्थ
मेरे संघर्ष की पुस्तक का
एक सतरंगी पृष्ठ
डरती हूँ
भीड़ के रेले में
अगर कहीं मिल गए
जार को तोड़ कर निकल गए
तो फिर वही
टूटा दर्पण
समय के रथ से
कुचला -
क्षत -विक्षत यौवन
उम्र से झुके कन्धों पर
थका सा चेहरा
ठीक वैसा ही
जैसा मेरा
नहीं नहीं
तुम हद में ही रहना
उस मर्तबान की ,
तुम कुबेर हो मेरे अतीत के
कंगाली नहीं वर्तमान की
२७ फरवरी २०१२
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