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अनुभूति में संध्या सिंह की रचनाएँ -

गीतों में-
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
मन धरती सा दरक गया
रीते घट सम्बन्ध हुए

दोहों में-
सर्द सुबह

छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना

सीलन

 

अब कैसे कोई गीत बने

शब्दों का झरना लुप्त हुआ
भावों का दरिया सुप्त हुआ
जब कलम रेत में ठूँठ हुई
अब कैसे कोई
गीत बने

जब चीर कलेजा बात लगे
और एक सदी सी रात लगे
या तेज दौड़ते खुशियों के
हिरनों पर कोई घात लगे

या बीच धार में छोड़ चले
फिर ऐसा निष्ठुर
मीत बने

बेचैन करे फिर व्यथा कोई
रोके ड्योढी पर प्रथा कोई
या घुटे साँस दीवारों में
अनकही रहे फिर कथा कोई

जो कसे बेडियाँ पैरों में
फिर कट्टर कोई
रीत बने

फिर पंख परिंदे का टूटे
या बीच राह मंजिल छूटे
पूरा घट जिसको सौंप दिया
वो बूँद बूँद जीवन लूटे

फिर कोई खंडित स्वप्न दिखे
या एक अधूरी
प्रीत बने  

२९ जुलाई २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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