अनुभूति में
संध्या सिंह की
रचनाएँ -
गीतों में-
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
मन धरती सा दरक गया
रीते घट सम्बन्ध हुए
दोहों में-
सर्द सुबह
छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना
सीलन
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खोज
एक ओर तू निराकार ..
उस पर मेरी दर्शन की आस
कैसा विरोधाभास ?
दूर तक फैला-
सवालों का आसमान ,
तर्क के पंखों पर एक निरर्थक उड़ान
कब क्यूं कहाँ कैसे..
अनुत्तरित जिज्ञासा,
मिल न पायी तेरी
सटीक परिभाषा
जीवन मे आये जो संकट के पल ,
परीक्षा कहूँ
या कर्मों का फल ?
कैसी कार्यप्रणाली,
कैसा समीकरण ?
अपने ही उत्तर से हल
अपने सारे प्रश्न
बस अनुमान और अटकलें
चल तेरी खोज मे
कुछ और भटक लें
२७ फरवरी २०१२
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