अनुभूति में
संध्या सिंह की
रचनाएँ -
गीतों में-
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
मन धरती सा दरक गया
रीते घट सम्बन्ध हुए
दोहों में-
सर्द सुबह
छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना
सीलन
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बबूल
कोई अहंकार से चुप
कोई हीनता से मौन,
इस पसरी हुई चुप्पी का
उत्तरदायी कौन ?
ये नोकदार काँटों सा
तीखा सन्नाटा
हर घर कि देहरी पर
धूप सा बँट जाता
इसे क्रम कहो या बिखराव
पर इसी ओर बहता है....
रिश्तों का बहाव
कि परिचय पहचान प्रगाढ़ता के बाद
परायेपन का भाव
डूब जाने के डर से लोग
किनारे पर खाली सीपियाँ चुगते हैं
अब फूल नहीं झरते हैं मुँह से
क्यों कि -
लोगो की जीभ पर बबूल उगते हैं
२७ फरवरी २०१२
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