अनुभूति में
संध्या सिंह की
रचनाएँ -
नये गीतों में-
एक अधूरी खोज
कुछ लम्हे रेतीले
जिजीविषा
यों हमने सोपान चढ़े
क्षणिकाओं में-
जीवन (कुछ क्षणिकाएँ)
गीतों में-
अंतर्द्वंद्व
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
प्रतिरोध
मन धरती सा दरक गया
मौसम के बदलाव
रीते घट सम्बन्ध हुए
समय- नदी
दोहों में-
सर्द सुबह
छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना
सीलन
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जिजीविषा
पर्वत के हैं लाख उलाहने
पत्थर से सब बंद मुहाने
मगर नदी को ज़िद ठहरी है
सागर तक बह जाने की
गिरवी सब कुछ ले कर बैठा
तकदीरों का कड़क महाजन
कर्तव्यों की अलमारी में
बंद खुशी के सब आभूषण
मगर नींद को अब भी आदत
सपना एक चुराने की
मर्म छुपा है हर झुरमुट में
हर जड़ में इक दर्द गड़ा है
लेकिन मौसम की घुड़की पर
जंगल बस चुपचाप खड़ा है
पर जिद्दी बरखा की मंशा
सब कुछ आज बताने की
सभी प्रार्थना पत्र पड़े हैं
किस्मत के ठन्डे बस्ते में
लक्ष्य दूर तक पता नहीं है
जीवन बीत रहा रस्ते में
पर पैरों ने शपथ उठाई
मंज़िल तक पहुँचाने की
१ दिसंबर २०१८
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