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अनुभूति में संध्या सिंह की रचनाएँ -

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एक अधूरी खोज
कुछ लम्हे रेतीले
जिजीविषा
यों हमने सोपान चढ़े

क्षणिकाओं में-
जीवन (कुछ क्षणिकाएँ)

गीतों में-
अंतर्द्वंद्व
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
प्रतिरोध
मन धरती सा दरक गया
मौसम के बदलाव
रीते घट सम्बन्ध हुए

समय- नदी

दोहों में-
सर्द सुबह

छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना

सीलन

 

एक अधूरी खोज

पूर्ण प्रेम की खोज सदा से
रही अधूरी है
रहे भटकते, मिली न फिर भी
ये कस्तूरी है

बाहर उत्सव सा कोलाहल
सन्नाटा भीतर
अभिलाषाएँ जड़ी हुई हैं
बस दीवारों पर

जीवन का पर्याय यहाँ पर
सिर्फ सबूरी है

घुलनशील कितने भी हों मन
प्रेम भरे जल में
रह जाते हैं फिर भी कुछ कण
बर्तन के तल में

पूर्ण मिलन की परिभाषा में
विरह ज़रूरी है 

१ दिसंबर २०१८

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