अनुभूति में
संध्या सिंह की
रचनाएँ -
नये गीतों में-
कौन पढ़ेगा
अंतर्द्वंद्व
प्रतिरोध
मौसम के बदलाव
समय- नदी
गीतों में-
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
मन धरती सा दरक गया
रीते घट सम्बन्ध हुए
दोहों में-
सर्द सुबह
छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना
सीलन
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अंतर्द्वंद्व
किसने धूमिल किया नगीना
किसने मुझको मुझसे छीना
मेरे भीतर मेरे मन का
कौन विरोधी आन बसा
जब भी अमृत कलश उठाया
जाने किसने ज़हर भरा
जब भी निर्भय होना चाहा
भीतर भीतर कौन डरा
जब भी खोले खुद के बंधन
जाने किसने और कसा
जब भी थक कर सोना चाहा
नस नस में ये कौन जगा
खुद पर जब भी रोक लगाई
भीतर सरपट कौन भगा
बीच नदी मेरे काँटे में
मेरा ही प्रतिबिम्ब फँसा
उसकी सारी ठोस दलीलें
मेरे निर्णय पिघल गए
दाँव नेवले और साँप से
टुकड़ा टुकड़ा निगल गए
मेरी हार निराशाओं पर
मुझमें ही ये कौन हँसा
९ जून २०१४ |