अनुभूति में
संध्या सिंह की
रचनाएँ -
क्षणिकाओं में-
जीवन (कुछ क्षणिकाएँ)
गीतों में-
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
मन धरती सा दरक गया
रीते घट सम्बन्ध हुए
दोहों में-
सर्द सुबह
छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना
सीलन
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जीवन (कुछ
क्षणिकाएँ)
१ –
जीवन
काल की भट्टी पर एक
जल भरा बर्तन
जिसमें
साल दर साल
वक्त की आँच से
तप कर
घटता जल स्तर।
२-
तपते दिन सी
कडुवी शराब में
डाल कर
सर्द रात के
टुकड़े बर्फ के
रोज़ मनाता है जश्न
ये नशेबाज़ वक्त
मेरी उम्र को
घूँट घूँट पी कर।
३ –
लो बीत गया
एक और साल
लिए हुए
बैसाखी पर आस्थायें
पंखों पर सवाल
चलता हुआ
खतरनाक रास्तों पर
लापरवाह चाल
लो बीत गया
एक और साल
४ –
कर गया
पिछ्ला बरस
कुछ रंगाई पुताई
मन की इमारत की
बना कर गया
मुस्कान के बेल बूटे
यादों के गुम्बद पर
क्या हुआ जो झर गया
उम्र की दीवार से
ज़रा सा
पलस्तर
१६ फरवरी २०१५
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