अनुभूति में
रवींद्र स्वप्निल प्रजापति
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ओ मेरे शरीर
कुछ दिन मैं
मेरे गाँव की नदी पर पुल
मेरा घर उम्र और दिन
मेरा मन और पृथ्वी
छंद मुक्त में-
आज़ादी
आसमाँ
एक दृश्य
ओ मेरे शरीर
कुछ दिन और मैं
कीमत
कोई आशा
झील- तीन कविताएँ
तू रौशनी की तरह
दिल की दुनिया
दोस्ती
पाँच छोटी कविताएँ
मेरी नसों में बह रहा है शहर
मैं इश्क का दिन हुआ
मैंने तुम्हें
यों हमने प्यार किया
सफर
समय की चादर |
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कुछ दिन और मैं
मैंने दिनों को स्ट्रीट लाइट
बना कर टाँग दिया
अपना हर दिन जो प्यार से रंगा था
आज शहर में हर तरफ हैं
मेरे दिन जो नीले लाल थे
आज मुझ से कितने दूर हैं
मेरे दिन चमक रहे हैं लाइटों में
दुकानों सड़कों और हर लड़की के चश्मे पर
सारा शहर गुजर रहा है
कार के काँच पर जैसे बदलते हैं दृश्य
मेरे दिनों में चमक रहा है प्यार
बरस रहा है मुस्कुराते शहर पर
मैंने अपने दिन छोड़ दिए हैं
मेरे दिन प्यार कर रहे हैं
मैं अकेला हूँ अपने दिनों के बिना
मैं खड़ा हूँ अपने ही दिनों के प्यार में
९ मार्च २०१५
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