अनुभूति में
रवींद्र स्वप्निल प्रजापति
की रचनाएँ-
नई रचनाएँ-
इक्कीस वर्ष होते होते
तो फिर युद्ध कौन करता है
मेरे गाँव की नदी पर पुल
मेरा घर उम्र और दिन
मेरा मन और पृथ्वी
छंद मुक्त में-
आज़ादी
आसमाँ
एक दृश्य
ओ मेरे शरीर
कुछ दिन और मैं
कीमत
कोई आशा
झील- तीन कविताएँ
तू रौशनी की तरह
दिल की दुनिया
दोस्ती
पाँच छोटी कविताएँ
मेरी नसों में बह रहा है शहर
मैं इश्क का दिन हुआ
मैंने तुम्हें
यों हमने प्यार किया
सफर
समय की चादर |
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मेरा घर उम्र और दिन
मेरे दिन जो मेरे दिन बन गए
इसमें मेरे सुनहरे दिनों की ईंटें लगी हैं
उम्र को स्लैब की तरह जमाया है
अपने इरादों के सरियों को
इसके पिलरों में डाला है
चाँदी सी दीप्त रातों को काट कर
इसका संगमरमरी फर्श बनाया
खूबसूरत मौसमों को गमलों में बदल कर
अपनी स्मृतियों के पौधों को रोपा है
घर कंक्रीट से नहीं बनते
रखना होते हैं दीवारों दरवाजों में
छत आँगन और गमलों में
अपनी जिंदगी के सबसे अच्छे दिन
९ मार्च २०१५
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