कोई
आशा
मैं रात का मुसाफिर
हूँ
मेरा सफ़र रात का सफ़र
तू आती है बनती है किरण
गुज़रती है आधी रात
तू सितारे की चमक बन कर
वक्त के चेहरे में नज़र आती है
मेरे सफ़र में उतरती
है
जैसे उतरती है धरती पर सुबह की धूप
दिन तू तारे के पास से गुज़ारती है
जैसे ज़िंदगी स्वर्ग जाती है फिर जन्म लेने
संसार का शोर भरा दिन
गुज़रता है
तू सूरज की किरणों में छुप कर देखती है
मेरे दुखों को, मेरे सुखों को
मैं सफ़र शुरू करता
हूँ
तू फिर आती है फिर बनती है किरण
५ जनवरी २००९ |