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अनुभूति में रवींद्र स्वप्निल प्रजापति
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सफ़र

हवाओं के झोंकों से सफ़र पूरे नहीं होते
वक्त के भरोसों से ख़्वाब पूरे नहीं होते

है ज़िंदगी जो करो मेहनत
मेहनत के बिना सोचे सफ़र पूरे नहीं होते

राह यूँ देखते रहने से क्या भला होगा
यूँ ज़िंदगी का कोई अंजाम नहीं होगा
दौड़े बिना धरती पे गिरना नहीं होता
जीवन के सबक चोटों बिना पूरे नहीं होते

उनके कहने से दो का सच चार नहीं होगा
आँख बंद करने से हकीकतों का पार नहीं होगा

२ नवंबर २००९

 

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