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ओ मेरे शरीर

ओ शरीर आज तुम कितने थके
आज तुमने कितनी सीढ़ियाँ चढ़ीं

सारे दिन तुम को बाईक पर घुमाता रहा
सुबह न एक्सरसाइज दी न नाश्ता
तुम्हें लिए लिए देर तक पड़ा रहा
फिर जल्दी पहुँचने की भागम भाग में
दौड़ता रहा, खींचता रहा, धूप और धूल में

ओ शरीर तुम मेरे सबसे अच्छे रूम मेट हो
मेरी तनाव भरी उलझी ज़िंदगी में
मैं तुम्हारे लिए खड़ा कर लेता हूँ रोग
तुम मुझ से चीख कर नहीं बोलते लेकिन
बता देते हो कि तुम अब थक रहे हो

फिर भी घर की ओर लौटते लौटते
तुम्हें लिए रुक जाता हूँ बस दस मिनट और

तुम्हारे न चाहते हुए भी दोस्त के साथ चाय
साथ-साथ सिगरेट भी पी लेता हूँ
तुम बताते हो खीझते हो, सीने में जलन को लेकर
और मैं लौटते हुए तुम्हें कितना थका डालता हूँ

मेरे काम के पीछे तुम सर्दी गर्मी झेलते हो
आफ़िस में देर रात में दर्द होने तक
फिर किसी पार्टी में जाने का कोई कार्यक्रम
तुम फिर भी साथ देते रहते हो राततक

जहाँ मैं लौटता हूँ तुम्हें लेकर कमरे पर
तुम पस्त हो चुके होते हो दुनिया की झिक झिक से
तुम्हारा लोच को खोकर कितना कुछ नष्ट कर लिया

न समय पर तुम्हें तेल पिला पाता हूँ न खिला पाता

मेरा और तुम्हारा साथ ज़िंदगी का साथ है
तुम अपने लिए हो और मैं अपने लिए रहूँगा
आखिर इस सब के लिए मुझे माफी माँगना चाहिए
ओ मेरे शरीर मैं तुमसे माफी चाहता हूँ...मुझे दो

२ नवंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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