अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रवींद्र स्वप्निल प्रजापति
की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
ओ मेरे शरीर
कुछ दिन और मैं
झील- तीन कविताएँ
मैं इश्क का दिन हुआ
सफर

छंद मुक्त में-
आज़ादी
आसमाँ
एक दृश्
कीमत
कोई आशा
तू रौशनी की तरह
दिल की दुनिया
दोस्ती
पाँच छोटी कविताएँ
मेरी नसों में बह रहा है शहर
मैंने तुम्हें
यों हमने प्यार किया
समय की चादर

 

कुछ दिन और मैं

मेरे दिनों को स्ट्रीट लाइट
बना कर टाँग दिया
मैंने अपना हर दिन प्यार से रंगा था
आज शहर में हर तरफ़ मेरे दिन टँगे हैं

मेरे दिन जो नीले लाल हैं
आज मेरे दिन मुझ से कितने दूर हैं

मेरे दिन चमक रहे हैं लाइटों में
सारा शहर गुज़र रहा है

मेरे दिनों में चमक रहा है प्यार
बरस रहा है मुस्कुराते शहर पर

मैंने अपने दिन छोड़ दिए हैं
मेरे दिन प्यार कर रहे हैं
मैं अकेला हूँ अपने दिनों के बिना
मैं खड़ा हूँ अपने ही दिनों के प्यार में
अपने दिनों की चमक से भरा हुआ

२ नवंबर २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter