अनुभूति में
रवींद्र स्वप्निल प्रजापति
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इक्कीस वर्ष होते होते
तो फिर युद्ध कौन करता है
मेरे गाँव की नदी पर पुल
मेरा घर उम्र और दिन
मेरा मन और पृथ्वी
छंद मुक्त में-
आज़ादी
आसमाँ
एक दृश्य
ओ मेरे शरीर
कुछ दिन और मैं
कीमत
कोई आशा
झील- तीन कविताएँ
तू रौशनी की तरह
दिल की दुनिया
दोस्ती
पाँच छोटी कविताएँ
मेरी नसों में बह रहा है शहर
मैं इश्क का दिन हुआ
मैंने तुम्हें
यों हमने प्यार किया
सफर
समय की चादर |
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मेरे गाँव की नदी पर पुल
मैं एक पहाड़ बना रहा
तुम एक गाँव बने रहे
हम इस तरह गाँव और शहर के दो दोस्त हुए
वक्त ने हमारे बीच से गुजर जाना मंजूर किया
वह नदी बना और हममें से होकर बहने लगा
मेरे सपने पेड़ बन कर उग आए
वक्त बहता रहा पेड़ों ने अपने झाड़ फैलाए
छाँव दी और फल गिराए
मेरे विचारों ने दूब का रूप धर लिया
तुम्हारी शुभकामनाएँ फूल बन गर्इं
वक्त की नदी में बहते हुए
हमारा साझापन गाँव की बचीखुची हरियाली में मिल गया
कुछ दिनों बाद मैं शहर आ गया
नदी सूख गई थी और
गाँव भी किनारों पर छाँव में नहीं रुका
पहाड़ में से एक सड़क गुजर गई
गाँव की नदी पर एक पुल उभर आया
मैं पहाड़ हूँ और नदी में देखता हूँ अपना चेहरा
नदी सूख गई और सारा गाँव पुल से निकल रहा है
तुम्हारे चेहरे से निकल कर एक तरफ
चाँद चला गया, एक तरफ सूरज चमक उठा
अब दोनों की किरणें तुम्हें सजाने आती हैं
चाँदनी में नदी की तरह
चल रही हो तुम और मैं खड़ा हूँ पुल पर
तुम में बह रहा है पूरा संसार
पहाड़, नदियाँ, स्मृतियों के फूल
चाँद का टुकड़ा और एक भरा पूरा दिन
तुम में दिखता है सब कुछ आरपार
घुटनों भर नदी की चपलता लिए
तुम गुजरती रहती हो हर क्षण
तुम्हारी मित्रता के बहते पानी में
मैं पुल की तरह खड़ा रहता हूँ
९ मार्च २०१५
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