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                    खो गई आशा मिली थीमिलकर कहीं फिर
 खो गई आशा
 कौन जाने
 कब कहाँ क्या-
 हो गई आशा?
 सुबह का-बेखबर होकर
 देर तक सोना
 रोशनी का-
 इस तरह से
 बेवफ़ा होना
 कह रहा-
 जगकर तुरत
 फिर सो गई आशा।
 हवाओं का बेवजहदिन-रात बस
 अफवाह ढोना
 इस गुज़रते दौर का
 इस कदर
 लापरवाह होना
 हँसी थी-
 हँसकर सभी कुछ
 रो गई आशा।
 अकेले का अचानकएकांत में भी
 भीड़ होना
 और बेचारे शहर का
 भीड़ में वनवास ढोना
 यों मुहजबानी
 गाँव घर की
 हो गई आशा
 २८ जनवरी २००८
                    
        
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