| 
                    हम शब्दों के 
                    सौदागर हम शब्दों के 
                    सौदागर हैंकिंतु अर्थ के नहीं पुजारी
 भाव जगत में रह कर के भी
 रहे अभावों के अधिकारी!
 दर्द हमारा सगा 
                    सहोदर,और वेदना है सहगामी
 दिन प्रतिदिन अपनी पीड़ा की
 हम करते खुद ही नीलामी,
 बोली जिन लोगों ने बोली-
 हम उनके भी हैं आभारी!
 कभी-कभी तो मन 
                    रोता हैपर बाहर हँसना पड़ता है
 जीवन भर की कड़ी कसौटी-
 में खुद को कसना पड़ता है,
 हम जंगल के पारिजात हैं-
 काँटों में ही रहन हमारी
 मोलभाव की इस 
                    दुनिया में,कीमत का बाज़ार है सारा।
 घाटे में रह करके अब भी,
 मूल्यों पर विश्वास हमारा।
 फिर भी दाग लगा जाती है,
 यह काजर की कोठी कारी!
 २८ जनवरी २००८
                    
        
                     |