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अनुभूति में रविशंकर की रचनाएँ —

नए गीत-
अनुवाद हुई ज़िंदगी
एक विमूढ़ सदी
खो गई आशा
गाँव और घर का भूगोल
जल रहा है मन
बीते दिन खोए दिन
हम शब्दों के सौदागर हैं

अंजुमन में-
ग़ज़ल

कविताओं में
इस अंधड़ में 

पौ फटते ही

गीतों में-
एक अदद भूल
गहराता है एक कुहासा
पाती परदेशी की
भाग रहे हैं लोग सभी
ये अपने पल
हम अगस्त्य के वंशज

संकलन में- 
गाँव में अलाव – दिन गाढ़े के आए 
प्रेमगीत – यह सम्मान
गुच्छे भर अमलतास – जेठ आया

 

बीते दिन खोए दिन

दिनों का क्या
उड़ गए परिंदों से
पाकर भी खोए दिन

दिन
जीवन से जुड़े
किंतु आयु में घटे हुए
पल छिन व
दिन महीनों में बँटे हुए
जवानी और बुढ़ापे के
भोगे हुए दिन
मीठे तथा खट्टे दिन
कड़ुए तथा तीते दिन

रुपहले दिन
सुनहले दिन
हरे रंग वाले दिन
लाल तथा काले दिन
कई स्वाद कई गंध
ईश्वर की माया से
धूप और छाया के
ताप के ताये हुए दिन
सर्दी में ठिठुरे दिन
सारे के सारे ही
साँस में पिरोए दिन

उड़ गए परिंदों से
मिलकर भी खोए दिन
दीख रहे सोए दिन

२८ जनवरी २००८

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