| अनुभूति में 
                  रविशंकर की रचनाएँ — नए गीत-अनुवाद हुई ज़िंदगी
 एक विमूढ़ सदी
 खो गई आशा
 गाँव और घर का भूगोल
 जल रहा है मन
 बीते दिन खोए दिन
 हम शब्दों के सौदागर हैं
 अंजुमन में-ग़ज़ल
 कविताओं मेंइस अंधड़ में
 पौ फटते ही
 गीतों में-एक अदद भूल
 गहराता है एक कुहासा
 पाती परदेशी की
 भाग रहे हैं लोग सभी
 ये अपने पल
 हम अगस्त्य के वंशज
 संकलन में- गाँव 
                  में अलाव – दिन गाढ़े के आए
 प्रेमगीत – 
                  यह सम्मान
 गुच्छे भर अमलतास – जेठ आया
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                    अनुवाद हुई 
                    ज़िंदगी अनुमोदन उम्र भर 
                    किया हमनेफिर भी प्रतिवाद हुई ज़िंदगी
 सीमाएँ उम्र भर जिया हमने
 फिर भी अपवाद हुई ज़िंदगी!
 अपने को जीने की कोशिश में-
 कोरा अनुवाद हुई ज़िंदगी!
 गिरवी रख हरा 
                    भरा नंदन वनले आए काग़ज़ के फूलों को
 रोज़-रोज़ लाए खुशियाँ उधार
 रखकर के ताक पर उसूलों को,
 पके हुए आमों की चाहत में-
 नींबू का स्वाद हुई ज़िंदगी!
 जीवन के सुस्त 
                    कदम मोड़ों परतुमको हर बार हम पुकारें हैं
 अपने को दाँव पर लगा करके
 हारे हैं हार के सहारे हैं,
 पत्थर की मूरत के आगे बस-
 कोरी फरियाद हुई ज़िंदगी!
 जीवन को 
                    बाँट-बाँट किश्तों मेंलौटे जब गुज़री तारीख़ों पर
 काटकर किनारा वो गुज़र गए
 रुके बिना दर्द भरी चीख़ों पर,
 हम तुम दोनों के बीच जीवन भर
 व्यर्थ का विवाद हुई ज़िंदगी!
 २८ जनवरी २००८
                    
        
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