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अनुभूति में रविशंकर की रचनाएँ —

नए गीत-
अनुवाद हुई ज़िंदगी
एक विमूढ़ सदी
खो गई आशा
गाँव और घर का भूगोल
जल रहा है मन
बीते दिन खोए दिन
हम शब्दों के सौदागर हैं

अंजुमन में-
ग़ज़ल

कविताओं में
इस अंधड़ में 

पौ फटते ही

गीतों में-
एक अदद भूल
गहराता है एक कुहासा
पाती परदेशी की
भाग रहे हैं लोग सभी
ये अपने पल
हम अगस्त्य के वंशज

संकलन में- 
गाँव में अलाव – दिन गाढ़े के आए 
प्रेमगीत – यह सम्मान
गुच्छे भर अमलतास – जेठ आया

 

हम अगस्त्य के वंशज

हम अगस्त्य के वंशज ठहरे -
खारे आँसू पीते,
रोज़ सिसकियों -
मर मिटते हैं
और ठहाकों जीते!

हम जंगल के पारिजात हैं
हम काँटों में हँसते,
जीवन हुआ कसौटी,
खुद को -
रहे उम्र भर कसते
आँसू और हँसी दोनों को
हमने लिया सुभीते!

भीड़ झेलता दरवाज़ा
आँगन बुनता सन्नाटा,
एक गाल पर चुंबन
दूजे पर वियोग का चाँटा,
जो भी मिला -
दे गया अनुभव
कुछ मीठे, कुछ तीते!

मट्ठा पीते फूँक-फूँक हम
जले हुए हैं दूधों,
हम अषाढ़ के चातक
जीते हैं -
स्वाती की बूँदों
श्रम सीकर से भर देते हम
सुख के सागर रीते!

हम अगस्त्य के वंशज ठहरे -
खारे आँसू पीते,
रोज़ सिसकियों -
मर मिटते हैं
और ठहाकों जीते!

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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