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अनुभूति में रविशंकर की रचनाएँ —

नए गीत-
अनुवाद हुई ज़िंदगी
एक विमूढ़ सदी
खो गई आशा
गाँव और घर का भूगोल
जल रहा है मन
बीते दिन खोए दिन
हम शब्दों के सौदागर हैं

अंजुमन में-
ग़ज़ल

कविताओं में
इस अंधड़ में 

पौ फटते ही

गीतों में-
एक अदद भूल
गहराता है एक कुहासा
पाती परदेशी की
भाग रहे हैं लोग सभी
ये अपने पल
हम अगस्त्य के वंशज

संकलन में- 
गाँव में अलाव – दिन गाढ़े के आए 
प्रेमगीत – यह सम्मान
गुच्छे भर अमलतास – जेठ आया

 

एक अदद भूल

सहमी-सी शाम एक
एक अदद भूल-
डाल गई
जाल एक
मन के प्रतिकूल!
सुरसा-सी फैल रही
सुधियों की बाँह
लील गए
मन को कुछ
रेशमी गुनाह,
झोंक नैतिकता की
आँखों में धूल!
तृप्ति एक
तन मन दो
छिड़ गया विवाद
उँगली पर
पनपे जब
रसना के स्वाद,
ताक पर
रख कर सब
नियति के उसूल!
वेद की
ऋचाओं ने
खींचे प्रतिबंध
कुशा और अंजलि भर
जल के अनुबंध
रेतों पर रोपे हैं -
रिश्तों के मूल!
डाल गई
जाल एक
मन के प्रतिकूल!

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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