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                    भाग रहे हैं लोग 
                    सभी दिन-दिन भर लाखों के पीछे
 भाग रहे हैं लोग सभी,
 रात-रात सोई आँखों में
 जाग रहे हैं लोग सभी!
 मुसकाने का मन 
                    हो लेकिन खुद पर ही आता है रोना
 कोलाहल के बीच न जाने
 सूना-सूना मन का कोना
 रो-रो कर क्यों?
 हँसने का कर
 स्वांग रहे हैं लोग सभी!
 गंगाजल पर कदम 
                    कदम में यहाँ बड़े प्रतिबंध जड़े हैं
 और वारुणी के स्वागत में,
 घर-घर बंदनवार खड़े हैं
 लम्हों से सदियों का बदला
 माँग रहे हैं लोग सभी!
 जहाँ रोज़ मरना 
                    पड़ता हो वह जीना भी कैसा जीना
 कदम-कदम पर लाचारी में,
 घूँट खून का पड़ता पीना
 रोज़-रोज़ खुद को सूली में
 टाँग रहे हैं लोग सभी!
 
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