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वापसी
दुपहरी की चमक में
जल रहा है सबकुछ
कतारें
पीपों, बाल्टियों, घड़ों और
गर्म थपेड़ों के कपड़े पहने
बस्ती के कितने लोगों की
खालीपन बैठा
पालथी मारे
पानी आता उस नल में तो
लौटती घर की ठंडी मटकी
बहुत देर तक हवा ने मारा जोर
खुली टोंटी से
बजती रही सीटी
पाइप ने कही पानी की
बुदबुदाहट
फिर सब शांत हो गया
एक दिन और बीत गया
थकन भरी इस यात्रा से
वे लौट रहे थे
क्या उनके भीतर की प्यास भी लौट रही थी
कंठ से फिर जेहन के तल्ले में
जहाँ से वह उठी थी.
१ जून २०१७
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