अनुभूति में परमेश्वर
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उल्टी गिनती
पट्टी-पहाड़ा पढ़ते पढ़ते
चले जाते थे एक से सौ तक
घंटी बजते ही शुरू हो जाता था
उल्लास का गणित
फिर जाना गिनती उल्टी भी होती है
उसके ख़त्म होने का मतलब एक शुरुआत है
कुछ धुआँ और शोर
और चाँद की तरह
हमारा एक तारा आकाश में
जैसे हम प्रक्षेपित हो जाते थे उसे देखते देखते
सुदूर आकाश गंगा की शीतल रोशनी में
फिर जाना गिनती उल्टी ही होती है
जीवन,
दिए की रोशनी,
वसंत के रंग और बदली का नीर
पल पल चुकता ही रहता है
और अब धरा के
इस कोने से उस कोने तक
हमारे मन में डर बनकर
गूँज रही है
उल्टी चलती एक घड़ी की टिक टिक
जो न जाने कब कहाँ शून्य को छू ले
बहुत दिनों से
मन चाहता है
फिर से बचपन की पाठशाला
में लौट जाना
पर हर दिन अखबार देखकर
पाता हूँ नामुमकिन
उस सरल सी गिनती को
फिर से दोहरा पाना
२८ जनवरी २०१३ |