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शो छूटने की घंटी तक

परदे पर चलती आकृतियों
से आती आवाजें
दरअसल एक धोखा है
वे आती हैं
दूर से कहीं

यह जो हँसी अभी अभी खनकी है
यह अनुगूँज है उस गहरी उदासी की
जो उस सुन्दर स्त्री के मन में घर किये बैठी है

घूमते दृश्यों में
एक खोज उस चित्र की भी है
जिससे बरसों पहले आया था भागकर एक किशोर
छोड़कर एक खाली जगह किसी की आँखों में

इसमें एक स्पॉट बॉय
के मन का वह प्रमेय है
जिसके अभीष्ट में
वह खड़ा हो गया है
उस अभिनेत्री की बाँह थामे

वह उस गायक के जीवन का सबसे प्रसन्न क्षण था
जब उसने स्टूडियो के मौन में
घोल दी थी उदासी की एक नील
आसमान उतरा जा रहा है
इस दृश्य में
दुनिया के सबसे चमकते सितारे के सर पर

बजती हुई सीटियाँ
उस सब की चाह है
जो छिटका पड़ा है
हमारी देहेंद्रियों से
एक गिरे हुए दुपहिये से विलग सवार जैसा

पोस्टरों की तरह चिपक गए हैं
किरदार शहर की दीवारों पर
लाल बत्ती वाला भिखारी
गमछा लपेटे कूली
अंधेरी गलियों का शाकाल

बहुत दूर से आ रही है एक आवाज़
और उसके भी पीछे है
एक दुनिया
जिसका कंठ रात की घिघ्घी में बंधा हुआ है

इस अँधेरी दुनिया में
टॉर्च हाथ में लिए खड़ा है
समय
जो जानता है
किसे कहाँ बैठकर देखना है तमाशा
और उसे कहाँ गुम हो जाना है
शो छूटने की घंटी तक...

१ अप्रैल २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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