अनुभूति में परमेश्वर
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सत्य: तीन रेखाचित्र
१.ईनाम
वह रहता रहा
कई कई दिनों मेरे साथ
एक अजनबी की तरह
पहचाना तो जाना
इश्तेहार छपे थे उसके
अख़बारों में
दीवारों पर
उसके सर पर ईनाम था।
२.हम ही
हम ही थे
जो चलते रहे
उसे तड़पता छोड़
ऊँचाइयों के राजमार्ग पर
हमीं ने कहा
उसे बचाने आये हैं हम
इस शिखर पर।
३.पहचान
उसकी जेबें फटी थीं
नहीं खोज पाई
भीड़
उसकी देह पर
पहचान का कोई चिन्ह
जो बुझा हुआ था
वह किस गुमनाम
घर का दीपक था?
२८ जनवरी २०१३ |