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विस्तार

 


 

 

विरासत

लौट आयेगी बारिश
उसके साथ मिटटी की महक
पतझड़ के बाद लौटेंगे
शाखों पर मुकुल

गौरय्या भी लौटेगी
शाम होने पर
तूफ़ान भी
भर लायेंगे फिर
आकाश की निर्दयता

सूरज भी लौटेगा
चाँद भी
चाँदनी भी
उसके रूप में मुग्ध
तारे भी

समय के पार
किसी आकाशगंगा में
लौट आएँगे अनगिन
प्रखर प्रभा पुंज

वह ज्वालामुखी भी लौटेगा
करवट लेगी फिर धरा
सुनामी साँसों से फिर
जीवन उधार माँगेंगे
कभी न लौटाने की मंशा से

सृष्टियाँ लौटेंगी
प्रलय लौटेगा
अवतारी होंगे
फिर देवता भी

बस मेरे लौटने
की सम्भावना
ओढ़े है
कई कई प्रकाश वर्षों लंबी
एक अंतहीन चादर

और मेरे बस में है
मुठ्ठी भर बीज बारिश के लिए
कुछ तिनके गौरय्या के लिए
तूफानों के लिए साहस
सृष्टियों के लिए साँसें
देवताओं के लिए कुछ प्रार्थनाएँ
पतझड़ी टहनियों को अनश्वर अनाम अनगिन फूल
सूरज को प्रेम उत्प्रेरित साँसों की थोड़ी गर्मी
चाँद को बचपन में देखे कुछ निडर स्वप्न
तारों को शीतलता
प्रलय को अपनी सारी दुष्टता
आकाश गंगा को एक इन्द्रधनुषी पृथ्वी
सुनामी को समुद्र की सीमाएँ
दे जाना यह सब विरासत में
जाने से पहले

यही बेहतर है
लौटने की प्रतीक्षा से

२८ जनवरी २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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