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खोज

मैं सुबह उठता हूँ
तो ढूँढता हूँ
रोशनी
बरामदे के बीचों-बीच पड़ा अख़बार
मेज पर रखा चश्मा
और फिर एक कप चाय

सच कहा है किसी ने
धीरे धीरे चीजें अपनी जगह बना लेती हैं

जैसे अपना खोया चेहरा
मिलता है मुझे आईने के पार
और मेरे अंदर का गायक
बाथरूम की दीवारों के बीच

चाँद में अकसर मिल जाता है
कैशोर्य का प्रेम
और पुरानी डायरी में
फूल की एक पाँख

पर जब खोजता हूँ
रिश्तों में विश्वास और आँखों में प्रेम
तो खोजता ही रह जाता हूँ
झुँझलाहट में याद नहीं रहता
अक्सर
कि क्या मैंने कभी इन्हें
रखा भी था वहाँ पर

१ अप्रैल २०१६

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