अनुभूति में परमेश्वर
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अंत
जब अंत निकट होगा
चुकने लगेंगे शब्द
खोखले हो जायेंगे अर्थ
और हाथों से फिसलने लगेगी
कविता
रिश्ता लौट जायेगा
प्यासा
मन को खटखटा कर
आँख रो नहीं पायेगी
खड़े होकर भी दुःख के
अनंत झरने के नीचे
शिशु खिलखिलाना
छोड़ देगा
माँ के आँचल में लिपट कर भी
जब अंत निकट होगा
विवशताएँ पसरी होंगी
हमारे ह्रदय के आस पास
और हम बोल नहीं पाएँगे
प्रेम के ढाई अक्षर
बहुत कोशिशों के बावजूद
हम पहचान नहीं पाएँगे
नाख़ून में छुपे दैत्य
और पेड़ की कोंपल में छुपे
ईश्वर को
तब अंत निकट होगा
२८ जनवरी २०१३ |