अनुभूति में परमेश्वर
फुँकवाल
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शेष
कुछ है जो बचा रह जाता है
जैसे मेले के बाद
बटुए में बच जाती है चिल्लर
और जल चुकने के बाद
बाती की देह में नेह
रह जाता है आँगन में
सुख का कोई पल
माँ के बाद भी
तुलसी के चौरे की तरह
उत्सव के बाद बचे रह जाते हैं चित्र
और चित्रों के बाद
आत्मा में खुशबू
फूल के झर जाने के बाद रह जाता है
मिट्टी की कोख में सौन्दर्य का बीज
देह के साथ नहीं जाता सब कुछ
खोजने पर मिल ही जाती है
शब्दों और बोली के परे
बची रह गई
कोई कविता
खोलें तो मिल जाती हैं
समय की पुरानी संदूक में
खुशी की लिखी चिट्ठियाँ
और आने वाले पल में
उसे साकार करने की सीख.
१ जून २०१७
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