अनुभूति में परमेश्वर
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अतीत
भीड़ है मेले में
मिट्टी के खिलौने
बस गर्द समेट रहे हैं
सब जुटे हैं
कोलंबस झूले और
रोलर कोस्टर के इर्द गिर्द
यह जीवन के छोर पर जीने का जमाना है
कुछ पुस्तकें
पुरानी संदूक से
अभी अभी निकाली गयी हैं
जो बिना पृष्ठ पलटे
तौल दी जायेंगी
आठ रूपये किलो में
अम्लीय वर्षा से उपजे
जिद्दी वनस्पतियों के जंगल ने
अब ढँक लिया है
उस खुशबूदार
वन को
चौराहे का बरगद
घर में एक बोनसाई बन सिमट गया है
आज के सलीकेदार
लिविंग रूम में
बेतहाशा शोर है
किसी चैनल के
भडकाऊ संगीत का
सदियों से सच्चे साबित
विचार का
एक बूढ़ा स्वर
गूँजता है
अतीत के बरामदे से
कोई है
जो एक घूँट
पानी पिला दे मुझे.
१ जून २०१७
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