इस आँगन में सजा दिये हैं
किसने रजनीगंधा फूल
किसी पुरानी याद सरीखे
धीरे धीरे उमग रहे हैं
मधुर गंध के दीपक जैसे
मन-मंदिर में सुलग रहे हैं
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इत्र बसी पोटली वाले
गहने रजनीगंधा फूल
दुग्ध हँसी की किरन
सरीखे
पोर पोर चाँदनी सजाए
शरद मेघ-सी धवल लुनाई
रूप राग रस रंग नहाए
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तारों जड़ी चूनरी वाले
सपने रजनीगंधा फूल
ये थकान के कठिन पलों
में
विश्रामों के संग रहे हैं
तुहिन कणों से भीगे-भीगे
मधुर पलों के अंग रहे हैं
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रखे सदा सहेजकर मन में
हमने रजनीगंधा फूल
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- पूर्णिमा वर्मन
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