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          एक कहानी रजनीगंधा

 

 

आजीवन सूरज से लड़ते
दृढ़ अपनी क्षमताएँ करते
तपते दिन भर कड़ी धूप में
तब हँसकर खिल पाए रजनीगंधा

मादक मधुरिम परिमल उड़ती
दूर देश तक हम हो आते
इत्र सुगन्धित मन भाते हैं
प्रियदर्शी सब मित्र सुहाते
गंधराज का ताज मिला तब
हम अनुपम कहलाए रजनीगंधा

श्वेतवर्ण सुख-शान्ति माँगते
जाति धरम कुछ नहीं जानते
आभूषित करते हम तन-मन
इतना मनमोहक आकर्षण
उत्सवधर्मी जीवन जीते
तब यह सजधज पाए रजनीगंधा

प्रणय प्रसंग भरी गाथाएँ
पथ में बिछ–बिछ शूल निकाले
गंध मदिर पाटल जब खोले
अधरों पर पड़ जाते ताले
तोड़ मौन के बंधन सारे
लिखता एक कहानी रजनीगंधा

- भावना तिवारी
१ सितंबर २०२१

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