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          फूला रजनीगंधा

 

 

सावन के मौसम ने
खटकाया द्वार
फूला रजनीगंधा महक रहा प्यार

साँवरी घटाओं ने
बिखराए बाल
अम्बर की बहकी सी
लगती है चाल
धरती भी करने लगी
धानी शृंगार

बूँदों की अठखेली
भीगता है मन
कागज की कश्ती में
डूबता बचपन
बरखा नें छेड़ दिए सुधियों के तार

गाएँगे आओ सखि
सावन के गीत
झूलों के झोंटो पे
कजरी की रीत
महकी हवाओं में गूँजे मल्हार


- रमा प्रवीर वर्मा
१ सितंबर २०२१

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