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          यों नेह हुआ परिभाषित

 

 

धरती से अम्बर तक
कण कण का
हर स्पंदन आह्लादित है
यों नेह हुआ परिभाषित है

अपनी स्नेहिल खुशबू भेजी
रजनीगंधा की कलियों में
मन फिर-फिर लौट गया सीली
सुरभित सुधियों की गलियों में
खिलते फूलों सम रिश्ते से
अन्तर्मन आज सुवासित है
यों नेह हुआ परिभाषित है

कुछ धूप विरह की दिखलायी
कुछ पावस मधुर मिलन वाला
थोड़ी संवादों की मिट्टी
थोड़ा सा मौन कभी डाला
अपनेपन का पौधा अपना
अब मुस्कानों से गुंफित है
यों नेह हुआ परिभाषित है

जब मुखरित होगा प्रणय गीत
धड़कन धड़कन तब चहकेगी
बोसा देगी जब मदिर पवन
चहुँदिश सन्दल सी महकेगी
उस पल को सोच सोच कर ही
ये पल पल-पल आनन्दित है
यों नेह हुआ परिभाषित है

- निशा कोठारी
१ सितंबर २०२१

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