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          तुम रजनीगंधा-सी

 

 

तुम रजनीगन्धा सी महकीं
जीवन के अँधियारे में

आशाओं के फूल खिलाकर
भरी सुरभि तन मन में
खोल दिये सुख के वातायन
तुमने इस जीवन में

भरीं उमंगें गीत जगाये
रातों के उजियारे में
तुम रजनीगन्धा सी महकीं
जीवन के अँधियारे में

तुमको गले लगाकर मैंने
जग के दुख बिसराये
प्रिये तुम्हारी मुस्कानों ने
अनगिन स्वप्न सजाये

तुमने नई ताल भर डाली
जीवन के इकतारे में
तुम रजनीगन्धा सी महकीं
जीवन के अँधियारे में

- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
१ सितंबर २०२१

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