अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

          मुस्काई रजनीगंधा

 

 

महक उठी है घर आँगन में
प्रीति की इक रजनीगंधा
मन उपवन में पुष्प खिले हैं
मुस्काई रजनीगंधा

साँसों में बस जाओ अब प्रिय
रोम रोम सुरभित कर दो
डूब हृदय सागर में प्रियतम
धड़कन आनंदित कर दो
चांदनिया बन बिखरो मुझ पर
मै धरती तुम हो चंदा

पवन झकोरे सा दिल पागल
आलिंगन प्रिय का भाए
गुंजित अलि सा झूम झूम कर
निरखि निरखि शशिमुख आए
लहर लहर हूँ मैं तेरी और
तू गंगोत्री और गंगा

तन की माटी महक उठी है
कुंदन जैसा चमके मन
तेरी संगत से पाया है
खुशियों से प्लावित जीवन
तेरा मेरा संग अमर
तू प्रातः तो मैं हूँ संध्या

- मंजु सक्सेना
१ सितंबर २०२१

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter